Wednesday, June 22, 2022

How Indian president should be?


1985 की बात है , आलू के व्यापार के सिलसिले में जयपुर आना जाना होता था , UP के विधानसभा चुनाव चल रहे थे 
जिन आढ़तिये के पास मैं जाता था वे भाजपाई थे , जयपुर विधान सभा की कार्यवाही दिखवाई , कई मंत्रियों से अपने काम से जाते तो मुझे भी संग ले जाते उनसे परिचय करवाते 
एक बार वे अपने सूरत स्थित भाई को सी ऑफ करने रेलवे स्टेशन पर गए तो मुझे भी बुला ले गए 
रेलवे स्टेशन पर उनके परिवार के लगभग 25 पुरुष महिलाएं उनको छोड़ने आये थे , सबके सब लकदक कपड़े पहिने हुए , लेकिन मेरे कपड़े खासे गन्दे हो रहे थे 

गन्दे कपड़ों के बावजूद आढ़तिये भाई मेरे कंधे पर हाथ रखे रखे हुए थे , तब सूरत वाले भाई का ध्यान गया तो मेरे बारे में पूछा 
सिंधी भाषा में हुई बातों में इतना समझ पाया कि 
"बहुत मगज खोर लड़का है ,  बातचीतों में हर तरह की जानकारी लेता देता है"
अब वे सूरत वाले भाई सारे कुनवे वालों को छोड़ मुझसे बात करने में लग गए
राजनीति , चुनावी हालत , भाजपा कमजोर क्यों है , संघ की क्या हालत है
आदि आदि बातों के साथ साथ गोयल अग्रवाल महाराजा अग्रसेन पर भी बात पूछीं 
मैंने डिटेल में बता कर उनसे सिंधियों के सरनेम में  'नी' का मतलब पूछा 
दो दिन पहले चेटी चंद हो कर चुका था तो वरुण देव राजा दाहिर आदि हर तरह की जानकारी उन्होंने भी एक अध्यापक की तरह समझाईं 

तभी सायंकालीन अखबार आया , वो लिया उसमें राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह जी के अंगूठा टेक होने से  विदेशी मेहमानों के सामने उतपन्न असहजता को लेकर कोई स्टोरी थी 
तब उन्होंने राष्ट्रपति के व्यक्तित्व के बारे में जो कहा वो अभी तक याद है 

"राष्ट्रपति भवन पर लाखों रुपये घण्टों का खर्चा होता है , राष्ट्रपति जी के करवट लेते ही 80 फोन खड़क जाते हैं , इनकी एक एक हलचल के ऊपर दस दस जगह नोट लिखा जाना , दसियों लाख की सुरक्षा व्यवस्था 
कितना बड़ा राष्ट्रपति भवन , सैंकड़ों का स्टाफ , मुगल गार्डन , 26 जनवरी की परेड के दस्ते आदि आदि 
ये सब एक व्यक्ति के लिए नहीं वरन पूरे देश के प्रतीक के ऊपर खर्च किये जाते हैं
राष्ट्रपति भवन की छवि पूरे देश को प्रतिनिधित्व देती है 

तुम यहाँ मिले तुमसे मैं बात ना भी करता तो मुझे सूरत में मिलते तो पहिचान लेता कि ये जयपुर वाला व्यापारी है , ये भी याद रहता कि ये खंदौली का है ये अपने आप में बहुत कुछ होता 
लेकिन तुमसे बातचीत होने के बाद मुझे व्यापार से अलग फालतू बातें भी जैसे तुम कितने भाई हो , गांव में क्या करते हो , महाराजा अग्रसेन क्षत्रिय से वैश्य बने , तुम्हारे गोत्र , UP की राजनीति आदि आदि के बारे में भी पता हो चुका है 
तुमको भी झूलेलाल करांची आदि सिंधियों की काफी जानकारी हुई  

इन जानकारियों का होना हमारे व्यापार के लिए बिल्कुल भी जरूरी नहीं है 
लेकिन मुझे ये हमेशा याद रहेगा कि  कोई बात चलने पर जयपुर स्टेशन पर वो लड़का मिला गिरधारी वो तो ऐसे बता रहा था 

ऐसे ही यहां राष्ट्र्पति जी से विदेशी राष्ट्रों से सत्ता या विपक्ष के लोग केवल मिलने , सम्मान भोज लेने नहीं आते , वल्कि उनमें बहुत से ऐसे भी होते हैं जिनमें बातचीत करने की उत्सुकता भी होती है 
ऐसे में राष्ट्रपति जी का स्टाफ भी जानकारी आदि ले दे सकता है , हर तरह के अधिकारी होते है पूछने पर जबाव देने वाले 
लेकिन ऐसे हालातों में यदि राष्ट्रपति जी स्वयं बात चीत करें ,  जानकारी और विचारों का आदान प्रदान करें तो आने वाले के दिमाग में भारत की कुछ और ही छवि बनेगी लेकिन 
यहां तो केवल सिक्खों को साधने के लिए अंगूठा छाप बिठा दिए तो ऐसी शर्मिन्दगीयां तो झेलनी ही पड़ेंगी 

तभी ट्रेन आगयी और चलते चलते बोले 
"राष्ट्रपति के पास भले ही पॉवर नहीं होती लेकिन वो देश की सम्पूर्ण संस्कृति , रहन सहन , धर्म व आहार विचारों का चेहरा होता है , इस पद पर इन सब क्षेत्रों के विशेषज्ञ को ढूंढ कर बिठाया जाना चाहिए

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